Story: An out-of-luck youngster Raj Kishore (John Abraham) and his friends Junky (Arshad Warsi) and Chandu (Pulkit Samrat) are hired by gangsters Raja (Saurabh Shukla) and WiFi Bhai (Anil Kapoor) in a bid to recover their damages. But this is just the recipe for disaster that brings in more destruction.
Review: At one point in the film, John Abraham’s character Raj declares, “Zaroori nahi ki har cheez ka matlab ho.” This is perhaps the guiding light for the story, screenplay, dialogues and pretty much everything that goes on in Pagalpanti. The problem is not the fact that it is a slapstick comedy, but the fact that there’s little or no semblance of a coherent narrative. From the very first scene, the film is armed with loud action and dialogues trying to be funny, but far from that. And there are a lot of characters, one sillier than the other. While Anil Kapoor once again plays the flashy gangster with his trademark loudness, Arshad Warsi is the funny guy with witty one-liners. John Abraham exudes charm despite his goofy character and Pulkit Samrat once again plays up on his boyish charm. But the three heroines are reduced to looking pretty and mouthing silly lines such as, “Papa kehte hain kiss karne se main pregnant ho jaungi.” Among the character artistes, Saurabh Shukla is impressive as the bumbling mobster who is more funny than scary. There is also a character named Niraj Modi (Inaamulhaq) evidently fashioned on the fugitive businessman Nirav Modi. With an unconvincing Gujarati accent, his character comes off as yet another stereotypical cliché.
Director Anees Bazmee, along with his co-writers, throw in everything into the mix. From exciting car chases to high-octane destruction scenes, from African lions to an entire act involving industrial strength glue – all shot beautifully in the picturesque UK. But nothing sticks, thanks to a weak script. There are far too many songs placed randomly that only add to the runtime. Towards the end, it even meanders into a patriotic subplot that seems more forced.
Even with an enviable starcast and heavy-duty action, Pagalpanti never really manages to pull off more than a few laughs.
कलाकार- जॉन अब्राहम, अनिल कपूर, इलियाना डिक्रूज, अरशद वारसी, सौरभ
शुक्ला, पुलकित सम्राट, कृति खरबंदा, उर्वशी रौतेला
जब निर्देशक ने फिल्म की टैगलाइन में ही कह दिया है कि 'दिमाग मत लगाना' तो
शायद यह बात दर्शकों को गंभीरता से लेनी चाहिए। एक पैसे का दिमाग लगाना भी
हानिकारक साबित हो सकता है। पागलपंती को एक तरह से बॉलीवुड की कई कॉमेडी
फिल्मों का कॉकटेल मान सकते हैं। थोड़ी सी हाउसफुल, थोड़ी सी हेरा फेरी,
थोड़ी सी वेलकम मिला लो.. और बन गई पागलपंती।
कहानी
राज किशोर (जॉन अब्राहम) की साढ़े साती चल रही है और वह जिस बिजनेस में हाथ
लगाता है, वो बिजनेस बुरी तरह से डूब जाती है। अपनी किस्मत से परेशान राज
किशोर और उसके दो दोस्त जंकी (अरशद वारसी) और चंदू (पुलकित सम्राट) का
सामना होता है गैंगस्टर राजा (सौरभ शुक्ला) और वाईफाई भाई (अनिल कपूर) से।
तीनों दोस्तों की वजह से गैंगस्टर का एक बड़ा नुकसान हो जाता है, जिसकी
भरपाई करने के लिए तीनों को वहीं नौकरी पर रख लिया जाता है। लेकिन राज
किशोर की साढ़े साती का असर इन गुंडों पर दिखने लगता है और सभी बर्बादी के
कगार तक पहुंच जाते हैं। अब साढ़े साती के प्रकोप से निकलकर ये सभी बर्बादी
से कैसे बचते हैं, यही है फिल्म की कहानी। इस बीच पैसों का हेर फेर भी है,
लव स्टोरी है, भूतनी का खेल भी है और देशभक्ति भी है।
निर्देशन व तकनीकि पक्ष
निर्देशक अनीस बज़्मी ने वेलकम और नो एंट्री जैसी कॉमेडी फिल्में दी हैं,
जिसके हर संवाद पर ठहाके गूंजते थे। वहीं, पागलपंती गिनकर कुछ मौके देती
है, जहां आप दिलखोल हंस सकते हैं। फिल्म में इतने सारे किरदार और अलग अलग
प्लॉट डाले गए हैं कि कहानी कहीं से कहीं भागने लगती है और बिखड़ जाती है।
तर्क- वितर्क तो अलग, कहानी में कनेक्शन की काफी कमी है। 'दिल दिया है, जान
भी देंगे, ऐ वतन तेरे लिए' के साथ देशभक्ति का प्लॉट यदि निर्देशक ने
हंसाने के लिए डाला है, तो वह कामयाब रहे हैं। लेकिन यदि कहानी में गंभीरता
लाने की कोशिश की गई है, तो यह काफी बेतुका है। पागलपंती की कहानी अनीस
बज़्मी, राजीव कौल और प्रफुल्ल पारेख ने लिखी है। सुनील पटेल की
सिनिमेटोग्राफी और प्रशांत सिंह राथौड़ की एडिटिंग औसत है। 2 घंटे 32 मिनट
लंबी इस फिल्म को आराम से 15-20 मिनट छांटा जा सकता था।
अभिनय
कोई दो राय नहीं कि अनिल कपूर, सौरभ शुक्ला और अरशद वारसी फिल्म की जान
हैं। उनका अंदाज़ हंसाता है। इलियाना डिक्रूज भी अपने किरदार में जंची हैं।
लेकिन बाकी सभी सितारे अपने किरदारों में कोई छाप नहीं छोड़ते। दो- चार
मजेदार संवाद छोड़कर जॉन अब्राहम के हाथों में कुछ खास नहीं आया। पुलकित
सम्राट, कृति खरबंदा, उर्वशी रौतेला औसत हैं। फिल्म में बतौर सह कलाकार कई
बेहतरीन कलाकारों को जोड़ा गया है, जैसे कि बिजेन्द्र काला, ज़ाकिर हुसैन,
इनामुलहक.. लेकिन इनके हिस्से गिने चुने दृश्य ही आए।
संगीत
साजिद- वाजिद, हनी सिंह और तनिष्क बागची का संगीत प्रभावित नहीं करता। तुम
पर हम हैं अटके यारा, बीमार दिल, ठुमका जैसे गाने फिल्म की लंबाई बढ़ाते
हैं और कुछ नहीं। थियेटर से निकलने के बाद शायद ही ये गाने आपको याद भी
रहेंगे।
देंखे या ना देंखे
फिल्म के एक सीन में राज किशोर यानि की जॉन कहते हैं 'जरूरी नहीं कि हर
चीज़ का कोई मतलब हो', एक तरह से अनीस बज़्मी की फिल्म 'पागलपंती' का सार
है। टाइमपास के लिए फैमिली के साथ यह फिल्म देखी जा सकती है। फिल्मीबीट की
ओर से पागलपंती को 2.5 स्टार।
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