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Angrezi Medium






Angrezi Medium Story: Champak Bansal (Irrfan) is a simple, small-town businessman – one of the owner's of Ghasitaram sweet shop chain – who’s leading a comfortable life with his teenage daughter, Tarika (Radhika Madan). But, Tarika has big dreams – of graduating from a recognised university in London. With little means to fulfil his daughter’s ambition, how far will the father go to ensure Tarika realises her 'videshi aspirations'?

Angrezi Medium Review: Born and raised in Udaipur (Rajasthan), Champak’s world pretty much revolves around his daily bickering with his other Ghasitaram brother, Gopi (Deepak Dobriyal), and caring for his only daughter, Tarika, who’s all set to graduate high school and embark on another academic journey. But, unlike her father, she doesn’t want to limit her dreams to the place she has grown up in; instead, she wants to explore what lies outside of her small world. Unaware of what's ahead, Champak gives in to his daughter's wishes, but things start to spiral out of control when it comes down to paying the hefty fee. A dedicated father, Champak vows to do whatever it takes to send his daughter to study abroad, and treads on a path that not only proves his unconditional love for his 'betiya', but also redefines their relationship.

Homi Adajania's ‘Angrezi Medium’ touches upon the pulse of the young generation's obsession with pursuing further studies in foreign countries, and their family's determination to embrace every Himalayan hurdle for their loved ones. There are other underlying themes, too, but this remains the primary subject of the film.

It is a well-known fact that in reality, Irrfan shot this movie while undergoing treatment. But, while watching this film, you can put that thought aside. What you witness on screen is the actor in his element – in every frame. He just takes you along... you laugh with him, cry with him and every time he overcomes an obstacle, you rejoice with him. Irrfan breathes life into Champak in a way that nobody else can. And walking shoulder to shoulder with him is yet another fine actor, Deepak Dobriyal. His camaraderie with Irrfan is a testament to the fact that both of them are such polished, well-prepared actors. Radhika Madan, as this mildly rebellious and often clueless teenager, pulls off a fine performance, especially in the scenes where her movingly beautiful relationship with her father unfolds. Their chemistry is organic, and the portrayal of their respective characters seem so real that their dilemmas and inner conflicts start to resonate. Kiku Sharda, as the childhood buddy of the two brothers, is his usual funny self. Ranvir Shorey, as Balakrishna 'Bobby' Tripathy, living the seemingly perfect NRI dream, acts as a catalyst in moving the plot ahead. His depiction of Bobby comes as a refreshing twist in the plot and Shorey does complete justice to his part. Kareena Kapoor Khan does well in her brief appearance as tough cop Naina and adds to the chaos in the second half of the film. However, her relationship with her mother, Mrs. Kohli (played by Dimple Kapadia), is underexplored. It would have been interesting to watch the dynamics of their relationship play out in the movie.

The look and feel of this comedy-drama is all things sweet and small-town – the actors consistently carry a thick local accent (Radhika's sounds a bit forced though) and close attention has been paid to what we call a 'small-town traits' that beautifully plays out in multiple scenes and sequences as the story progresses. With one foot in homeland and the other in London, the music and the background score have been chalked out keeping the two different scenarios in mind; works out fine and differentiates the mood well.

The first half of the screenplay is more engaging then the second, but, while trying to fit in too many subplots, the story goes quite haywire. There are some fantastic moments in the film, and sharply written scenes between the characters, too, which in turn, prove to be the highlights of this drama. However, the story is far too convenient and has inconsistencies that are hard to overlook, but Irrfan's exceptional performance makes it worth the watch.

'Angrezi Medium' does lose its grip on several occasions, what it does not lose is its hold on the emotion that it is trying to bring out, and the message it leaves you with.



कलाकार- इरफान खान, दीपक डोबरियाल, राधिका मदान, करीना कपूर खान एक दृश्य में बेटी पिता से कहती है- पापा, आपको नॉक (knock) करके मेरे घर आना चाहिए था। थोड़ी हैरानगी और दुख के साथ लौटते पिता ने कहा- तारू, तू कभी भी घर आ सकती है, बिना नॉक किए, तेरे लिए मेरे दरवाजे हमेशा खुले मिलेंगे। ऐसे ही संवेदनशील और कुछ खूबसूरत संवादों से सजी है 'अंग्रेजी मीडियम'। फिल्म में इमोशन और कॉमेडी के जरीए मां- पिता के साथ बच्चों के बदलते रिश्तों के कई रंग को दिखाया गया है। चंपक बंसल (इरफान) एक छोटे शहर का साधारण सा बिजनेसमैन है, जिसकी घसीटाराम मिठाई दुकान काफी नामचीन है। वह विधुर है और उसकी पूरी जिंदगी अपनी बेटी तारिका (राधिका मदान) के इर्द गिर्द ही घूमती है। बचपन से ही तारिका लंदन जाकर पढ़ाई करने का ख्वाब देखती है। जब पिता को अपनी बेटी के इस ख्वाब के गंभीरता का अंदाजा लगता है तो वह उसके सपनों को पूरा करने के लिए किस हद तक जा सकता है, इसी की कहानी है 'अंग्रेजी मीडियम'।
 
फिल्म की कहानी उदयपुर के चर्चित मिठाई दुकान 'घसीटाराम' के मालिक चंपक बंसल (इरफान) की पत्नी का शादी के कुछ समय बाद ही निधन हो जाता है। जिसके बाद उसकी पूरी दिनचर्या अपनी बेटी तारिका (राधिका मदान) के इर्द गिर्द ही घूमती है। साथ ही मिठाई दुकान को लेकर अपने भाई गोपी (दीपक डोबरियाल) से लगातार बकझक चलती रहती है। सबकी ज़िंदगी उदयपुर में साधारण तौर पर कट रही होती है। लेकिन तारिका विदेश जाकर पढ़ना चाहती है। वह अपने सपनों को बांधकर नहीं रखना चाहती.. और पिता से कहती है- "मैं कुएं का मेंढ़क बनकर नहीं रह सकती, मुझे दुनिया देखना है".. पिता भी अपनी बेटी के ख्वाब को अपना हिस्सा बना लेते हैं और उसे प्रोत्साहित करते हैं। लेकिन बात भारी भरकम फीस पर आकर रूक जाती है। लेकिन जैसा कि फिल्म की शुरुआत में कहा गया है- "पिता वो मूर्ख है जो बालक प्रेम में सब कुछ न्यौछावर करने को तैयार रहता है".. चंपक बंसल भी अपनी बिटिया को लंदन की यूनिवर्सिटी में पढ़ाने के लिए हर कोशिश करता है। जिस दौरान इनका रिश्ता कई उतार- चढ़ाव और नई भावनाओं से गुजरता है।

अभिनय फिल्म का सबसे मजबूत पक्ष है कि इसके स्टारकास्ट। अपनी बिटिया से बेइंतहा मोहब्बत करने वाले पिता के किरदार में इरफान खान ने एक बार फिर दिल जीत लिया है। वह हर फ्रेम में उम्दा अदाकारी का नमूना छोड़ते हैं। इस फिल्म में इरफान हंसाते भी हैं और रूलाते भी हैं। फिल्म पूरी तरह से उनके कंधों पर टिकी है। वहीं, हर दृश्य में उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलते हैं दीपक डोबरियाल, जो कि इरफान के भाई का रोल निभा रहे हैं। दोनों के बीच की कैमिस्ट्री शानदार है। वहीं, एक टीनएजर के किरदार में राधिका मदान भी खूब जंची हैं। खासकर अपने पिता के साथ दिखाए गए संवेदनशील दृश्यों में। घसीटाराम भाइयों के बचपन के दोस्त के किरदार में कीकू शारदा मजेदार लगे हैं। NRI बॉबी त्रिपाठी बने रणवीर शौरी ने अपने किरदार के साथ पूरा न्याय किया है। जबकि करीना कपूर खान, डिंपल कपाड़िया, पंकज त्रिपाठी, तिलोत्तमा शोम जैसे बेहतरीन कलाकारों को कुछ खास कर दिखाने का मौका ही नहीं दिया गया।

निर्देशन 'हिंदी मीडियम' जैसी बेहतरीन फिल्म के सीक्वल को लेकर निर्देशक की जिम्मेदारी काफी बढ़ जाती है। होमी अदजानिया ने अपनी जिम्मेदारी सच्चाई से निभाने की पूरी कोशिश की है। पिता और बेटी के खूबसूरत संवेदनशील रिश्ते के साथ साथ फिल्म कई और भी विषय को छूती निकलती है। युवाओं के बीच विदेश में जाकर पढ़ने की सनक हो या एक उम्र में आकर अभिवावकों से आज़ादी की मांग.. निर्देशक ने कॉमेडी और इमोशन के माध्यम से सब दिखाने की कोशिश की है। लेकिन होमी अदजानिया ने बहुत सारे किरदार और मुद्दों को समेटने के चक्कर में फिल्म को काफी लंबा खींच लिया है। कई मौकों पर फिल्म बोर करती है। वहीं, सह कलाकारों के किरदारों को और भी निखारा जा सकता था, जिसे निर्देशक ने यादगार बनाने के लिए कोई खास प्रयत्न नहीं किया।

तकनीकि पक्ष एक ही बात जो इस फिल्म को 'हिंदी मीडियम' से कमतर बनाती है, वह है पटकथा। भावेश मनडालिया, गौरव शुक्ला, विनय छवाल और सारा बोदीनार द्वारा लिखी गई यह कई मौकों हिचकोले खाती है। संवेदनशील दृश्यों से जैसे जुड़ रहे होते हैं, फिल्म कट कर कॉमेडी में पहुंच जाती है। वहीं, ए श्रीकर प्रसाद की एडिटिंग भी थोड़ी ढ़ीली है। खासकर फिल्म का पहला हॉफ बेहद धीमा है, जिस वजह सेकेंड हॉफ में कई किरदार और ट्विस्ट आने के बावजूद फिल्म ध्यान ज्यादा आकर्षित नहीं कर पाती है। अनिल मेहता की सिनेमेटोग्राफी अच्छी है।

संगीत फिल्म का संगीत दिया है सचिन- जिगर और तनिष्क बागची ने, जो कि प्रभावित करती है। 'एक जिंदगी' गाना फिल्म में कहानी के साथ साथ आगे बढ़ती है और लम्हों में गहराई लाती है। इस गाने के गीतकार हैं जिगर सरैया।

देंखे या ना देंखे अंग्रेजी मीडियम कहीं ना कहीं अपने नाम के साथ पूरा न्याय नहीं करती है। फिल्म में शिक्षा पद्धति पर काफी कम बात की गई है। लेकिन पिता और बेटी के रिश्ते को पूरी सच्चाई से दिखाने में सफल रही है। इरफान खान लंबे समय के बाद बड़े पर्दे पर दिखे हैं और उनकी दमदार अदाकारी एक बार फिर दिल जीत लेती है। फिल्मीबीट की ओर से 'अंग्रेजी मीडियम' को 3 स्टार।

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